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Wednesday, September 3, 2014

काश और वे लम्हे.......? (खंड ५ )


                                                                                             खंड  ५ 

काश और वे लम्हे


और आज ईतवार का दिन आ ही गया, सुबह से सब मेले जाने की तैयारी में जुट गए, सब को बस एक फिकर सताए जा रही थी कि आज कौन सा कपड़ा पहनना है, सभी अपने सबसे अच्छे कपडे छाँट छाँट कर अलग कर रहे थेघर की औरतें मैचिंग  साड़ी बलाउज पसंद कराने में जुटी थी, तो कोई इसतरी कराने की फ़िक्र मेँ था, ऐसा लग रहा था कि कोई उत्सव में जाने की तयारी हो रही है

कौशल्या देवी ने महराज को दिन का  खाना  आज जल्दी बना लेने ले लिए सारी हिदायतें दे डाली, फिर धीरेन   से पूछा, "अरे धीरेन  , मेला जाने के लिए समप्नी और  टप्पर गाडी के गाडीवान को खबर कर दी है न"

"जी बड़की भौजी, राम खेलावन और सरजुगवा दोनों को हम कल्हे बोल दिए थे, अब बस आते ही होंगे"

"फिर उन्हों ने अपने पति से पूछा "ए जी आपका क्या प्रोग्राम है" ?

"ऐसा करो कि तुम सभी लोग दिन में मेला के लिए निकलोहम शाम में अपने टमटम (एक्का गाडी) पर सिनेमा के टाइम पर पहुँच जायेंगे", बाबूजी ने कहा ।  

"ठीक है, वैसे भी सर्कस का शो  तो हम लोग तीन  बजे देखने वाले हैं, आपको तो सर्कस में कोई दिलचस्पी है नहीं, वही ठीक  रहेगापर आप साढ़े पांच बजे तक जरूर से पहुँच जाईयेगा  

"हम लोग यहाँ से एक बजे मेला के लिए निकले, क्यों धीरेन  " ?

"जी भौजी, एक बजे तक तो निकलना ही पड़ेगायहाँ से लगभग एक डेढ़ घंटा तो जाने में लग ही जायेगा

"कौशल्या देवी ने कहा कि ठीक है, सब को बोल दो कि दिन का खाना वाना सब जल्दी ख़तम कर ले, और सिनेमा के बाद रात का खाना मेला में ही सब लोग खा लेंगे", इतना कह कर कौशल्या देवी सारे इन्तेजाम में लग गयी

तभी बाहर सड़क पर बैंड बाजे कि धुन सुनायी पडी, सभी उत्सुकता वश बरामदे में आकर खड़े हो गए, बैंड पार्टी के साथ माइक  पर कोई  उदघोषणा  कर रहा था ............................................................... !

"सुनिए सुनिए सुनिए, फारबिसगंज के निवासियों सुनिए, आपके शहर फारबिसगंज मेले में इस बार ओरिएंटल सरकस नए नए खेल लेकर आया है, ढेर सारे दिल दहलाने वाले खेल, जान की बाजी लगा कर हवा में झूलने वाले खिलाडियों का खेल, जिनके साथ जांबाज लड़कियों को हवा में तैरते हुए देख कर आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगेनए नए करतब लेकर आपके अपने शहर में इन सब को लेकर पहली बार आया है ओरिएंटल सरकस, जो भी इन खेलों को देखने से चूक जायेगा वह ज़िन्दगी भर अपने को कोसता रहेगा  

फारबिसगंज के निवासियों, बच्चेबूढ़ेजवान, औरत, मर्द सब के लिए केवल एक ही मौका है, आइये भारी तादाद में पूरे परिवार के साथ बैठ कर देखियेआपका अपना ओरिएंटल सरकस, रोजाना चार  शो, ठीक तीन, पांच, सात और नौ बजे, पहला शो ठीक तीन बजे शुरू हो जायेगा, टिकट दर, फर्स्ट क्लास डेढ़ रुपैया, सेकंड क्लास एक रुपैया

और थर्ड  क्लास केवल  बारह आनाजरूर से आईयेदेखना मत भूलिए, आपका अपना ओरिएंटल सरकस”  

अभी सरकस  वाला बैंड बाजा सामने से ओझल हुआ ही था कि एक और बैंड की आवाज सुनाई दीयह बैंड बाजा  तो पहले से भी बड़ा था, सामने में "मूसा  बैंड"  का बड़ा बड़ा बैनर  लिए दो आदमी चल रहा था, ठीक उसके पीछे बड़े बड़े पोस्टर, पता चला कि फिलिम नागिन का प्रचार वाला है, बड़े जोर शोर से से माइक पर उदघोषणा कर रहा था ......................!

"आज से आपके मेले में आ गया, आ गया, आ गयापहली बार विजय टाकिज के रुपहले परदे पर, पूरे परिवार के साथ जरूर  देखियेइस साल की सब से सुपर हीट फिलिम "नागिन", जिसके मुख्य कलाकार हैं, "प्रदीप कुमार और बैजंती मालासाथ  में हैं .............. !
फिलिम नागिन का संगीत दिया है फिलिम जगत के मशहूर संगीतकार "हेमंत कुमार" ने, इस फिलिम के गाने ने रिकार्ड तोड़ सफलता हासिल की है और पिछले सभी गाने का रिकार्ड तोड़ दिया है, सुनिए इसी फिलिम के एक गाने की झलक, और फिर बज उठा "मन डोले मेरा तन डोले, ...........................................! 

फिलिम के बीन की जादू पर सांप भी खींचे  खींचे चले आते हैं, देखिये पहली बार सुपर हीट गाने ईस्टमेन कलर में, रोजाना तीन शो, दोपहर साढ़े तीन बजे, शाम साढ़े छः बजे और रात्रि साढ़े नव बजे, माइक पर उदघोषणा करते करते बैंड पार्टी का कारवां आगे निकल पड़ा।

तरह  तरह के प्रचार, "अपनी बालों की सुरक्च्छा के लिए इस्तेमाल कीजिये यह जडी बूटी वाला हिमालय  तेल, हिमालय की तराई में पाए जाने वाले गुम हो चुके बहुमूल्य जडी बूटियों से हिमालय में ही रहने वाले ऋषि मुनिओं द्वारा तैयार किया हुआ हिमालय  तेल, जिसे  हिमालय तेल कमपनी ने केवल आपके लिए एक रुपैये में लाया है", आईये, और अभी खरीदें, स्टाक सिमित है"

पूरे मेले की अवधि में पूरा शहर इसी तरह प्रचार वाले की शोर में डूबा रहता, कभी "चश्मा गोला साबुन ही इस्तेमाल करिए", तो कभी, "मजबूत दांतों के लिए लाल दन्त मंजन, बस एक चुटकी भर मंजन , और दांत मोती की तरह सफ़ेद"
और प्रचार का कभी न ख़तम होने वाला यह सिलसिला चलता रहता, चलता रहता, चलता रहता”......................................................................................!

राम खेलावन और सरजुगवा दोनों अपने अपने ड्यूटी पर पहुँच चुके थे, राम खेलावन समप्नी गाडी  जब कि सरजुगवा  टप्पर गाडी का  गाडीवान था, राम खेलावन ने अपने बैलों का बड़ा प्यारा नाम रख्खा था, वह उन्हें "हीरा और मोती" कह कर पुकारता था, सरजुगवा भी राम खेलावन से कम नहीं था, वह भी देखा देखी अपने बैलों का नाम  "रामा और किशना" रख्खा था, दोनों अपने अपने गाडी को चमकाने में लग गएबैलों को बड़े प्यार से नहलाया, उनके गले में घंटी बाँधी, फिर गाडी को धो धा कर साफ़ सुथरा किया, समप्नी और  टप्पर दोनों गाडी मेला जाने के लिए तैयार खड़े थे, धीरेन   ने एक बैलगाड़ी का भी अलग से प्रबंध किया था, घर के  नौकर चाकर के बैठने के लिए ।  

ठीक एक बजे सभी मेला जाने के लिए बहार बरामदे में   गए, समप्नी और  टप्पर गाडी में सभी मिल जुल कर लद गए समप्नी गाडी की शान निराली थीउन दिनों समप्नी गाडी रखना एक प्रेस्टीज हुआ करता थाबैल जिस गाडी को खींचता था, उस गाडी के ऊपर चारों कोने पर सुन्दर लकड़ी के  गोलनुमा  खम्बे लगा दिए जाते थे, उन खम्बों पर लकड़ी की तख्ती का ही फ्रेम बनाकर छत जड़ दिया जाता था, अन्दर से खूब अच्छे मोटे रंगीन कपडे का परदा  भी लगाया जाता था, इन परदों को गिरा देने से प्राइवेसी  हो जाती थी, परदों में छोटे छोटे झरोखों जैसी खिड़की का भी प्रबंध किया जाता था,

वहीँ  टप्पर गाडी का डिजाईन अलग किस्म का था, गाडी के ऊपर बांस और टट्टी   का अर्ध गोलाकार छतनुमा बनाकर उसे रंगीन तारपोलिन से ढँक दिया जाता था जो छत का काम करता था, टप्पर
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गाडी आमने सामने से खुला रहता था, किसी किसी में परदा डाल कर उसे भी बंद करने का प्रबंध था

समप्नी गाडी टप्पर गाडी से सुपेरिअर माना जाता थाराम खेलावन को इस बात का गुमान था कि वह समप्नी गाडी का गाडीवान था, इसलिए वह अपने को सरजुगवा से थोडा सिनिअर समझता  था, सरजुगवा इस बात को समझता था, इसलिए वह राम खेलावन को "बड़के भैया" कह कर संबोधित करता था, राम खेलावन को जब वह बड़का भैया कह के पुकारता तो उसे अपने सिनिअर होने का गर्व होता ।

राम   खेलावन की समप्नी गाडी सबसे आगे निकली,  ठीक उसके पीछे सरजुगवा की टप्पर गाडी और उसके पीछे पीछे हरिया की बैल गाडी, हरिया नाम था उस बैल गाडी के गाडीवान का 

कौशल्या  देवी, धीरेन, विरेन, उनकी दोनों देवरानियाँ और पोते पोती सब समप्नी गाडी में बैठेबांकी लोग टप्पर गाडी में, जो बचे खुचे और नौकर चाकर थे, हरिया की बैल गाडी में बैठ गएइस तरह ये  कारवां  मेला की ओर प्रस्थान कर गया

घर से  मेले तक  का सफ़र लगभग डेढ़ घंटे का था, मेला कोई एक डेढ़ कोस (चार - साढ़े चार किलो मीटर)  की दूरी पर लगा था, मेला के लिय वह स्थान निर्धारित था, हर साल मेला वहीँ लगता था, मेले के लिये डाक बोली जाती थी, सबसे ज्यादा डाक बोलने वाले को पूरे मेला का छेत्र मेले अवधि के लिया लीज पर दे दिया जाता था, डाक से मिली रकम को माल खाने (ट्रेजरी) में जमा कर दिया जाता था, जिसे

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मेले का बंदोबस्त मिलता वह मेले की सरजमीन को मेले में आने वाले सिनेमा घर, सर्कस, दूकान, होटल वगैरह के अनुसार प्लाटिंग कर के डाक के द्वारा एलाट कर देता था जिसमें उसे प्लाट के हिसाब से पैसा मिलता था, वही उसकी आमदनी हुआ करती थी    

राम खेलावन बड़ी सावधानी के साथ अपनी सम्पनी गाडी को चला रहा था, बड़ा बातूनी था राम खेलावन, चुप तो  वह बैठिये नय सकता था, अभी थोड़ी दूर ही वह निकला होगा कि वह बोल उठा

,"जानत हैं मलकिनी, ई जो हीरवा और मोतिया हैं न, वो दोनों अपन अपन किलवा  को पहचानता है, हीरवा को अगर मोतिया के जगह जोत दो तब  चलबे नय करेगावही हाल मोतिया का भी हैदोनों अपना अपना जगह पक्का कर के बैठ गया है, हीरवा का ई बायां और मोतिया का दायाँ फिक्स है, हम जब भी इनको जोतते हैं तो इस बात का पक्का ध्यान हमको रखना पड़ता है, अभी देखिये, कितनी मस्ती में दोनों ताल मेल ताल मिला कर चल रहे हैं, ऐसी जुगल बंदी कि बड़का बड़का सहनाई वादक बिसिमैल्ला खान और तबला बजाने वाले दांतों तले उंगली ना दवा ले तो मलकिनी आप हमरा नाम बदल डालियों, उधर सरजुगवा भी कुछ इसी तरह की हांक रहा था

कौशल्या देवी और सभी को राम खेलावन की बातों में बड़ा रस मिल रहा था, तभी कौशल्या देवी ने राम खेलावन से पूछा, "हम तुमरे गाना की बहुते तारीफ़ सुने हैं, कौनों लोक गीत सुना दो सबको

"अब आपके सामने हम क्या गायें, हमको शरम लगती है, आपके सामने तो आज ही हम जुबान खोले हैं"

"अरे शरम का क्या बात है, सब तो घर के ही लोग हैं. इनसे कैसी शरम"

"ठीक है मलकिनी, आपका हुकुम हम कैसे टाल सकते हैं, अब हमको जो थोडा बहुत गीत आता है वही हम आपको सुनाते हैं"

इतना कह कर राम खेलावन "लवकुश दीक्षित का लिखा अवधी भाषा का प्रसिद्ध लोक  गीत गाता है जिसमें भाभी द्वारा देवर की बदमासियों ,शरारतों का  बड़ा प्यारा वर्णन हैइस गीत में भाभी बताती है कि देवर पुत्र के समान होता है, और देवर से कहती है कि अपनी शैतानियां समाप्त कर दे नहीं तो मैं देवरानी को बुलवा लूंगी ताकि तुम्हारी विरह की आग ठंडी हो जाएगी | भाभी कहती है कि जैसे भाई के साथ सावन मनाया जाता है वैसे ही मैं तुम संग होली खेलूंगी",

और फिर राम खेलावन ठेठ  देहाती स्ट्याल में जोर जोर से सुरु हो जाता है, सभी बड़े तन्मयता के साथ  सभी  उसके गाये गीत को सुनते हैं और बीच बीच में एक दूसरे  से उसका अर्थ समझने की कोशश करते है !     

 निहुरे निहुरे कैसे बहारौं अंगनवा, टुकुरु टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा,

निहुरे निहुरे कैसे बहारौं अंगनवा, टुकुरु - टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा,

भारी अंगनवा न बइठे ते सपरैनिहुरौं तो बइरी अंचरवा न संभरै,
लहरि-लहरि लहरै -उभारै पवनवा, टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।

छैला देवरु आधी रतिया ते जागै, चढ़ि बइठै देहरी शरम नहिं लागै,
गुजुरु-गुजुरु नठिया नचावै नयनवा, टुकुरु टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा

गंगा नहाय गयीं सासु ननदिया, घर मा न कोई मोरे-सैंया विदेसवा,
धुकुरु-पुकुरु करेजवा मां कांपै परनवा, टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा

रतिया बितायउं बन्द कइ-कइ कोठरियाउमस भरी कइसे बीतै दोपहरिया, निचुरि-निचुरि निचुरै बदनवा पसीनवा, टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।

लहुरे देवरवा परऊं तोरि पइयां, मोरे तनमन मां बसै तोरे भइया,
संवरि-संवरि टूटै न मोरे सपनवां, टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।

माना कि मइके मां मोरि देवरनिया, बहुतै जड़ावै बिरह की अगिनिया,
आवैं तोरे भइया मंगइहौं गवनवां, टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।

तोरे संग देउरा मनइहौं फगुनवाजइसै वीरनवा मनावैं सवनवां,
भौजी तोरी मइया तू मोरो ललनवा, टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा

राम खेलावन के गीत सुनकर सब मन्त्र मुग्ध हो जाते हैं, कौशल्या देवी कहती है  कि कितना बढ़िया चित्रण देवर भाभी के सम्बंद्भों का है इस गाने में  

धीरेन ने बड़की भौजी से कहा, “अरे भौजी लोग अपने देवर की बात नय समझंगे  तो और कौन समझेगाउसने अपनी पत्नी की ओर देखते हुए कहा, क्यों सुभद्रा है कि नहीं" ? 

"क्यों लल्ला जी, ई क्या कह रहे हैं, सुनते हैं न, हम भी तो आपके मन की बात जान लेते हैं, सुभद्रा ने चुटकी लेते हुए अपने देवर हिरेन से कहा, वह हिरेन को लल्ला ही कह कर पूकारती थी  

हिरेन की पत्नी बस मुस्कुरा कर रह गयीइन हंसी मजाकों के बीच एक  घंटा का सफ़र कब कट गया किसी को पता भी नहीं चलासच अच्छा समय बस देखते देखते बीत जाता है 

तभी राम खेलावन ने गाडी रोक दी, सभी ने लगभग एक स्वर में पूछा, "क्या हुआ राम खेलावन" ?

"जी मलकिनीई हमरा घर आ गया, हमरा बड़का भाग्य कि आज आप सब लोग एक साथ हमरा घर में पधारें है, मलकिनी, हमरा बहुते दिन से मन था कि एक बार आप हमरे भी अंगना में अपना पावँ रख देते, हमारा घर पवित्र हो जाता  

अब यह प्रोग्राम तो आज के एजेंडा  में था नहीं, उस पर सब को लग रहा था कि मेले के लिए विलम्ब हो जायेगा, पर राम खेलावन के आग्रह को भी तो ठुकराया नहीं जा सकता था, सब असमंजस की

स्थिति में थे तभी कौशल्या देवी ने कहा, "हाँ हाँ राम खेलावन, हमें भी अच्छा लगेगा, अरे सब लोग नीचे उतरो" ।

राम खेलावन  पहले ही से यह  प्रोग्राम बना कर  बैठा  था, वह पास के गाँव की पराईमरी स्कूल से दो चार बेंच और एक दो टेबुल ले आया था, सभी नीचे उतरेदेखा एक मिटटी का घरमिटटी की दीवालेंऔर उसके ऊपर खपरैल टीन का छतदो कमरे, एक सामने की ओर बरामदा और एक पीछे अंगने की ओर, फर्श मिटटी की ही थी, पर बिल्कुल चिकनी दीख रही थी, ऐसा लग रहा था की मानों अभी अभी इसे चिकनी मिट्टी से पोंछा गया हो, घर के ठीक सामने एक चांपा कल गड़ा हुआ था, दो लालटेन बरामदे में लटके हुए थे, जिसके  शीशे टूटे हुए थे, एक दो टूटी फूटी कुर्सी और एक पूराना हो चूका बेंच भी रख्खा  हुआ  था, चारों ओर हरियाली ही हरियाली   थी, राम खेलावन ने वहां की स्थानीय पेड़ पौधे, झाड - फूल  से घर को सजा रख्खा था, इस नीरे देहात में मिट्टी का घर इतना साफ़ सुथरा और हरा भरा हो सकता है, इसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी, संभवतः राम खेलावन का यह घर सही मायने में भारत वर्ष के ग्रामीण इलाकों की छवि दर्शा रहा था

सभी नीचे उतरे, राम खेलावन की मेहरारू सरस्वती देवी जिसे राम खेलावन प्यार से "सरसतिया" कह कर पुकारता थादौड़ी  दौड़ी वहां आयी, एक हाँथ से वह अपने सर पर रख्खे साडी के पल्लू को संभाल रही थी,   आते ही उसने सब के पावँ छू छू कर प्रणाम किया, राम खेलावन के दोनों बेटे और एक बेटी भी तब तक वहां पहुँच चुके थे, उन्हों ने भी सभी के  पावँ छुए

राम खेलावन ने कहा, "मलकिनीआप लोगन तनिक बैठ कर सुस्ताइये, हम अभी मिशिर  जी के यहाँ से चाय ले आते हैंअरे सरसतियागिलास लोटा मांज के ताजा पानी चांपा कल से भर कर सब को पिलाओ तब  तक हम चाय लेकर आ जायेंगे

"अरे राम खेलावन, ये मिशिर जी कौन हैं ? और उनके यहाँ से चाय ले के पिलाओगे ? क्यों ?

"जी मलकिनी, ई मिशिर जी यहाँ पास के पराईमरी इस्कूल के मास्टर हैं, यहीं बगले में रहते हैं, अब हमरे घर का चाय  हम आपको कैसे पीला सकते हैं" ।

कौशल्या देवी को सारी बात समझ में आ चुकी थी, दर असल राम खेलावन निचली जाति से था और उन दिनों बड़े जाति वाले निचली जाति के हाँथ का पानी तक नहीं पीते थे, पर कौशल्या देवी इन सबसे बिलकुल अलग किस्म की महिला थी, उन्हों ने कड़क आवाज में राम खेलावन को लगभग डांटते हुए कहा, "ई मिशिर जी उसीर जी के यहाँ से लाने  का कोई जरूरत नय है,  सरसतिया चाय बनाएगीउसी  के हाँथ का चाय हम सभी पीयेंगेक्यों धीरेन?

राम खेलावन ने बड़े कातर  भाव से कौशल्या देवी की ओर देखते हुए सरसतिया से कहा,"अरे टुकुर टुकुर अब हमरा मूहँ क्या देख रही है, जल्दी से चाय चूल्हा पर चढ़ा दो, और जितना जल्दी हो सके चाय बना कर सबको पिलाओ............?

राम खेलावन  अपने गमछी की कोर से अपनी नम आँखों को पोंछने लगा, सभी ने गौर किया की राम खेलावन गमछी से आँख पोंछने के

बहाने अपनी नम आँखों को छुपा रहा है, इधर मन ही मन राम खेलावन ने सोचा, इतना मान सममान तो किसी ने भी पहले नहीं दिया, सब दिन  ऊँच परिवार के लोगन सब नीच दृष्टी  ही से हमको देखिन हैं और आज इतना मान,  सच्चे जितना मलकिनी के बारे में सुनते थे, उससे भी ज्यादा अच्छी निकली, जरा भी भेद भाव नहीं, ऐसन मालिक मलकिनी बड़े भाग्य से किसी को मिलता है, अब तो हम क्या, हम्मर सब लड़कन भी अपनी ज़िन्दगी यही ड्योढ़ी पर गुजार दें तो भी ई रीन नय चूका पाएंगे, राम खेलावन एक दम से भावुक हो उठा था । 

सरसतिया मिटटी के चूल्हे पर लकड़ी जलाकर जल्दी से चाय बना कर मिटटी के ही कुल्हड़ में ले आयी, साथ में सूखा भुना हुआ चना, चिउड़ा और कुछ बिस्किट, सभी ने सरसतिया के चुस्ती  की मन ही मन तारीफ की । चाय एक दम कड़क बनी थी, धीरेन कह उठा "मजा आ गया राम खेलावनसारी थकन उतर गयी, अब जल्दी से गाडी जोतो और चलने की तैयारी करो ।

कौशल्य देवी ने राम खेलावन से कहा, "अरे राम खेलावन, तुम बहुते भाग्यवान हो कि तुमको  सरसतिया जैसी मेहरारू मिली, देखा इतना आदमी का चाय झटपट बना कर ले आयी, फिर उन्हों ने धीरेन   से पच्चीस रुपैये लिए और सरसतिया के हांथों में देते हुए बोली ;

 "सरसतिया, ई तुम रख लो, जाड़ा आ रहा है, बाल बच्चन का गरम कपड़ा सिलवा देना, और अपने लिए भी एक साडी मेला में खरीद लेना जरूर से, राम खेलावन को ई पैसा मत देना, पता नहीं पी पा के सब उड़ा देगा"

नहीं मलकिनी, हमको ई सब आदत नय है, सरसतिया तुम मलकिनी को बताओ, नहीं तो ई हमर बात का विशवास नय करेंगी"
सरसतिया ने लजाते हुए एक बार फिर सभी के पाँव छुए और लड़कन सब को भी ऐसा ही करने का इशारा किया
"अरे राम खेलावन, लड़कन सब को भी मेला घुमाने ले चलो, फिर सब लड़कन की ओर देखते हुए बोली, फटाफट जल्दी से अच्छा वाला पैंट कमीज पहिन कर बैल गाडी में बैठ जाओ हम सब मेला देखने जायेंगे ।

बैल गाड़ियों का यह कारवां एक बार फिर से मेला की ओर प्रस्थान कर गया । 

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