काश और वे लम्हे............? यह एक संस्मरण है १९५० के दशक का, जब मेरे सहर में दीपावली किस प्रकार से मनाई जाती थी और ठीक उसके बाद उस समय के विख्यात फारबिसगंज मेले का विस्तृत वरणन,मेरे सभी पाठक इस कहानी जो एक संस्मरण के रूप में संजोयी गयी है, पठनीय है, अरररीआ से प्रकाशित संवदिआ पत्रिका में यह प्रकाशित हो चुकी है,
यह ७ खंडो में प्रकाशित की जा रही है.इस संस्मररण को पढने के लिए लिंक निकघे दी जा रही है
http://lalitniranjan.blogspot.in
धन्यबाद
ललित निरंजन
यह ७ खंडो में प्रकाशित की जा रही है.इस संस्मररण को पढने के लिए लिंक निकघे दी जा रही है
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ललित निरंजन
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