काश और वे लम्हे
खंड ४
"अरे धीरेन , सुबह सुबह कहाँ चल दिए" ? बाबूजी ने पूछा ।
"जी बी. डी. ओ.
साहब के यहाँ
पास के लिए जा रहा हूँ, अभी भेंट नहीं हुयी तो फिर वे मेला के दौरे पे निकल
जायेंगे" ।
"बड़े भैया, कितने लोगों का पास बनवाँ लूं" ।
"बीस पच्चीस पास तो बनवा ही
लेना, और चार पांच पास सेकंड क्लास का भी, ई पोखरिया, गंगवा, महराज और बदरिया सभै देख लेगा सिनेमा, और हो सके लड़कन सब के लिए सर्कस का भी पास बनवा लेना, नय तो सर्कस देखने के लिए सब जरूरे हल्ला मचाएगा” ।
"जी बड़े भैया, हो जायेगा, आप चिंता मत करिए," इतना कह कर धीरेन अपनी साईकिल पर सवार हो ब्लॉक की ओर निकल पड़ा ।
ब्लॉक पहुंचते ही बी. डी. ओ. साहब से भेंट हो गयी, बी. डी. ओ.
साहब ने
धीरेन को देखते ही बड़े तपाक से कहा, "अरे धीरेन , सुबह सुबह इतनी जल्दी, सब खैरियत तो है न ?
"जी बी. डी. ओ.
साहब, आपकी दया से सब कुशले मंगल है, ऊ बड़े भैया ने कहा कि घर में सब को मेला
घूमा लाओ,
"नागिन" फिलिम देखने का उनको बहुते मन है, इसलिए हम आपकी सेवा में हाज़िर हो गए ।
बी. डी. ओ. साहब बड़े दूरदर्शी थे, उन्हों ने धीरेन के मन की बात भांप ली थी, बोले, "अरे इसमें क्या है, कितना लोग का पास चाहिए, और कौन दिन का” ?
"जी, ईतवार का ,
सिनेमा का
पच्चीस और सर्कस का बीस ठो" ।
"अरे धीरेन तुम तो जानते हो
कि अभी पहला ही हफ्ता है, पच्चीस पास ज्यादा हो जायेगा” ।
"अब हम तो सब को बोल आयें हैं कि पास का इन्तेजाम हो जायेगा, उस पर बड़की भौजी ने ईतवार का दिन फिक्स किया है, आप तो जानते ही हैं कि बड़की भौजी
को हम सभी माँ जैसा ही मानते हैं, और आपको भी कितना मानती हैँ वो, अब सब बस मेरा ही इन्तेजार कर रहें
होंगे कि धीरेन पास लेकर आता ही होगा, अब अगर पच्चीस पास का इन्तेजाम नहीं
हुआ तो हम किस किस को मना करेंगे और आपके रहते क्या मूहँ लेकर लौटेंगे, अब आप ही फैसला कर लीजिये ।
धीरेन के बोलने का अंदाज ऐसा था
कि बी. डी. ओ. साहब एकदम चुप हो गए और बोले "अच्छा ठीक है, हम विजय टाकिज केमैनजर के नाम से
चिठ्ठा काट देते हैं, जाकर मिल लो, और सर्कस के लिए चिंता मत करो, मेला जाकर तहसीलदार से मिल लेना, वह बोल देगा सर्कस कंपनी केमैनजर को ।
"अरे धीरेन , इस बार तुम नौटंकी का
जिक्र नहीं किये ? पता है, गुलाबो बाई और बिमला बाई दोनों आयी है, नौटंकी देखने का कब प्रोग्राम बना रहे हो”
?
"प्रोग्राम हम बनाते है न, दरोगा जी से भी बात कर लेंगे फिर आपको बताते हैं” ।
"अच्छा, अभी हम मेला का सब इन्तेजाम देखने
जा रहें हैं, कोई दिक्कत हो तो मेला में तहसीलदार से मिल लेना, हम उसको हिदायत दे देंगे” ।
"जी, हम भी निकलते हैं", इतना कह कर धीरेन
प्रणाम कर घर की ओर निकल पड़ा, बहुत खुश था, चलो बड़का काम हो गया, हम तो सब को दिलासा दे चुके थे, मेरी इज्जत का तो आज बस फलूदा बनते बनते रह गया, मन ही मन धीरेन ने बी. डी. ओ. साहब का धन्यबाद ज्ञापन
किया ।
घर पहुंचते ही धीरेन ने सब से पहले बाबूजी को और फिर अपनी बड़की भौजी को यह खुश खबरी दी कि “पास” का इन्तेजाम हो गया है, इतवार को मेले का प्रोग्राम पक्का, सब ने राहत की सांस ली, इसी “पास” के ऊपर मेले का पूरा प्रोग्राम जो फिक्स था ।
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