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Saturday, July 7, 2012

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काश और वे लम्हे............? एक संस्मरण ?

काश और वे लम्हे............? यह एक संस्मरण है १९५० के दशक का, जब मेरे सहर में दीपावली किस प्रकार से मनाई जाती थी और ठीक उसके बाद उस समय के विख्यात फारबिसगंज मेले का विस्तृत वरणन,मेरे सभी पाठक इस कहानी जो एक  संस्मरण के रूप में संजोयी गयी है, पठनीय है, अररिा से प्रकाशित संवदिआ पत्रिका में यह प्रकाशित हो चुकी है,
यह ७ खंडो में प्रकाशित की जा रही है,इस  संस्मरण  को  पढने  के  लिंक निचे दी जा रही है i

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काश और वे लम्हे............? एक संस्मरण ?


http://lalitniranjan.blogspot.in/2014/09/blog-post_42.html

धन्यबाद
ललित निरंजन 

अनकही कहानी - "और सुनयना कहाँ खो गयी" 
                                             

                     
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I love you all
Lalit Niranjan

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